वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥
अर्थ- हे प्रभु जब क्षीर सागर के मंथन में विष से भरा घड़ा निकला तो समस्त देवता व दैत्य भय से कांपने लगे आपने ही सब पर मेहर बरसाते हुए इस विष को अपने कंठ में धारण किया जिससे आपका नाम नीलकंठ हुआ।
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
शिव के चरणों में मिलते हैं सारी तीरथ चारो धाम
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
महाशिवरात्रि मनाने के आध्यात्मिक कारण
माँ री माँ वो मेरा स्वामी, मैं उस के पट की अनुगामी।
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद Shiv chaisa शीश नवावैं॥
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
सुबह सुबह ले शिव का नाम, कर ले बन्दे ये शुभ काम
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